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स्वर्गीय संगीत / लुईज़ा ग्लुक / उज्ज्वल भट्टाचार्य

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मेरी एक सहेली है जिसे अब भी स्वर्ग में आस्था है ।
वह बेवकूफ़ नहीं है, फिर भी अपने सारे ज्ञान के बावजूद, वह ईश्वर से बात करती है ।
वह सोचती है कि स्वर्ग में उसे कोई सुन रहा है ।
धरती पर तो वो बेहद तेज़-तर्रार है ।
हिम्मत भी है, हर मुसीबत का सामना कर लेती है ।
 
धूल पर एक मरी तितली पड़ी थी, लालची चींटियाँ उसे कुरेद रही थीं ।
संकट से मैं हमेशा तैश में आ जाती हूँ, हर हलचल के ख़िलाफ़ हूँ
लेकिन डरपोक भी, जल्द आँखें बन्द कर लेती हूँ.
जबकि मेरी सहेली परखकर देखती है, सबकुछ होने देती है
कुदरत के मुताबिक. मेरी ख़ातिर उसने
चींटियों को भगा दिया, और मरी हुई तितली को रख दिया
सड़क के किनारे ।

मेरी सहेली कहती है ईश्वर के लिए मेरी आँखें बन्द हैं, कि यही वजह है
सच्चाई से मेरे दूर रहने की । वह कहती है मैं एक बच्ची सी हूँ
जो तकिये में अपना सिर छिपा लेती है
ताकि कुछ देखना न पड़े, एक बच्चा जो ख़ुद से कहता है
कि रोशनी मायूस कर देती है –
मेरी सहेली माँ जैसी है, धीरज के साथ समझाती है
कि मैं बालिग बनकर जग उठूँ, हिम्मतवाली बनूँ ।

सपने में, मेरी सहेली मुझे डाँटती है. एक ही सड़क पर
हम चलते होते हैं, जाड़े का मौसम ।
वह कहती है कि दुनिया से अगर प्यार हो तो स्वर्गीय संगीत सुनाई देता है :
ऊपर की ओर देखो, वह कहती है । मुझे ऊपर कुछ नहीं दिखाई देता ।
सिर्फ़ बादल, पेड़ों के बीच बर्फ़ की तरह
काफ़ी ऊँची छलाँग लगाती एक दुलहन की तरह –
फिर मुझे उससे डर लगने लगता है; मैं देखती हूँ
वह धरती के ऊपर फैलाए जाल में फँस गई है –

दरअसल, हम सड़क के किनारे बैठे हुए हैं. सूरज को डूबते देख रहे हैं;
कभी-कभी, किसी पँछी की चीख़ ख़ामोशी को चीर जाती है.
हम इस लमहे को समझने की कोशिश करते हैं, यह बात
कि मौत से हम मुतमईन हैं, अकेलेपन से भी ।
मेरी सहेली धूल पर उँगली से गोले का निशान बनाती है, तितली हिलती-डुलती नहीं ।
वह हमेशा कोई पूरी चीज़ बनाना चाहती है, ख़ूबसूरत सा कुछ, एक तस्वीर
जो अपनी ज़िन्दगी से परे की हो,
हम बेहद ख़ामोश हैं । यह बैठना, कुछ भी न बोलना, चारों ओर शान्ति ।
एक समूची तस्वीर, सड़क पर अन्धेरा छाता हुआ, हवा
ठण्डी होती हुई, यहाँ-वहाँ चमकती चट्टानें –
हम दोनों को इस ख़ामोशी से लगाव है ।
रूप से प्रेम अन्त से प्रेम है ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य