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स्वर्णिम चाम चढ़ाई मृगों ने / प्रेम भारद्वाज
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स्वर्णिम चाम चढ़ाई मृगों ने
तब सीता भरमाई मृगों ने
आखेटक को माँस खिलाया
खुद तो घास ही खाई मृगों ने
भीतर कब देखी कस्तूरी
दौड़े, जान गँवाई मृगों ने
बाबा जी के ध्यान-कक्ष में
अपनी खाल बिछाई मृगों ने
मृग -तृष्णा के छल में आ कर
मन की प्यास बुझाई मृगों ने
प्राण दिए पर मृगनयनों से
प्रेम की जोत जगाई मृगों ने