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स्वाद / हरीशचन्द्र पाण्डे
Kavita Kosh से
ये स्वाद कैसे आकार लेता है
टेढ़ी चोंच की खुरचन
या समय का ख़मीर
कौन भरता है पंछियों के कुतरे गये फलों में
स्वाद
जो न रह सका डाल पर के फल में
और न ही अँट सका पंछी की चोंच में
नीचे टपक पड़े उस अंश का स्वाद कैसा होगा
ये ज़मीन ही जाने
क्या पता ज़मीन ही हो वह अंश
जो किसी अनअँटी चांेच से गिर पड़ा हो
पकते हुए ललछौंहे सूर्य को कुतरते वक़्त
इसीलिए है यह ज़मीन इतनी प्यारी कि
छोड़ना नहीं चाहता इसे कोई ता दम
क्या इसीलिए आकर्षित करती है ये ज़मीन
कि पेड़ से टूटा फल
गिरता है उसी पर...