भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्वीकारोक्ति / होदा एल्बन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: होदा एल्बन  » स्वीकारोक्ति

कई बार
रात के बीचो-बीच
फूट-फूट पड़ती है
मेरी रुलाई...

फिर
अपने आँसुओं को
मना कर
भेजती हूँ वापस

उन्हीं से
आज जगमग है
ये दुनिया

और
बुझ पाई है
मेरी धधक भी...


अंग्रेज़ी से अनुवाद : यादवेन्द्र