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स्वेटर आ प्रेम / दीप नारायण
Kavita Kosh से
अहाँक ओ स्वेटर
जे बीनिला उत्तर
स्वयं पहिर क' भजारने रही अहाँ
हल्लुक गुलाबी रंगक
से मोन अछि अहाँ केँ ?
हम एखन धरि रखने छी जुगुता क',
जहिया कहियो पहिरैत छी
होइत अछि जे
पँजियौने छी अहाँ भरि पाँज,
आ फेर जखन-तखन हँसोथति रहैत छी अपन देह,
निघारति रहै छी अएना,
बतियाइत रहैत छी किछु सँ किछु,
जे कि आँखि नहि बुझि पबैत अछि,
से सहजे बुझि जाइत अछि हृदय !
एहि स्वेटर केँ भेटल छैक अहाँक औँरीक स्नेह,
अहाँक दीर्घ सानिध्य,
अहाँक देहक गमकैत सुगंध,
जाहि सँ महमह करैत रहैत छी हम,
ओ स्नेह
जे आइयो हमरा मोन पाड़ै अछि
अहाँक लगीच होयबाक,
ओ सानिध्य
जाहि मे ऊब-डुब होइछ कोनो समय
जाहि सँ गमकैत अछि
आइओ हमर साँस
हम स्वेटर नहि
अहाँक प्रेम पहिरने छी
अपन काया मे।