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हँस कर और जियो / रामस्वरूप 'सिन्दूर'
Kavita Kosh से
रो-रो मरने से क्या होगा
हँस कर और जियो!
वृद्ध क्षणों को बाहुपाश में
कस कर और जियो!
रक्त दौड़ता अभी रगों में, उसे न जमने दो,
बाहर जो भी हो, पर भीतर लहर न थमने दो,
चक्रव्यूह टूटता नहीं, तो
धंस कर और जियो!
श्वास जहाँ तक बहे, उसे बहने का मौका दो,
जहाँ डूबने लगे, उसे कविता की नौका दो,
गुंजन-जन्मे संजालों में
फँस कर और जियो!
टूटे सपने जीने का अपना सुख होता है,
सूरज, धुन्ध-धुन्ध आँखें शबनम से धोता है,
ज्वार-झेलते अंतरीप में
बस-कर और जियो!