Last modified on 12 फ़रवरी 2016, at 12:56

हंस / निदा नवाज़

आँखों की दो
पोखरियों में सिमटा
वह हंस
क्षण में बनता है
आकाश भर
और क्षण में
शून्य भर
और झेलता है तनाव
एक पूरे मरुथल भर का
मेरे आग उगलते
इस चिनार शहर में.