भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हजार बर्षों की नींद / भूपिन / चन्द्र गुरुङ
Kavita Kosh से
एक बार के जीवन में
मैं हजारों वर्ष सो चुका हूँ
अब जागना चाहता हूँ नीँद से।
इंसान को पालने में रखकर
लोरी गाता है बुद्ध।
जगाऊंगा कहकर
बुद्ध भी मुझे सुलाकर चला गया है।
चलते चलते ही
सपना देखना सीखा है इंसानों नें
और भगवान ने तो
सोते हुए भी सपना देखना सिखाया है।
किताब के ठण्डे पन्नों के अन्दर
जैसे तितलियां दब जाती हैं
मैँ दबा हुआ हूँ
दर्शन के मोटे किताबों के बीच
और मस्त सोया हुआ हूँ जीवनभर
जागने के सपनें देखकर।
जागना चाहता हूँ अब मैं
हजारों वर्ष के गहरी नीँद से।