भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हट गुनगुनाये सवेरा हुआ / अनु जसरोटिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हट गुनगुनाये सवेरा हुआ;;
गुलिस्ताँ में हर सू उजाला हुआ

ज़माने से आशा न रखना कोई
ये ज़ालिम भला कब किसी का हुआ

हुए मुग्ध बच्चे कहानी में तब
जो परियों का उस में बसेरा हुआ

तवक्क़ो नहीं हम को इस से कोई
जब इँसाफ़ ही अन्धा बहरा हुआ

तुम्हें ले के जाऊँगी मंज़िल पे मैं
है रस्ता मिरा देखा भाला हुआ

किसी नेक साइत में जन्मा था वो
बुज़ुर्गों की आँखों का तारा हुआ

चलो खेल गुड़ियों का खेलें कहीं
खिलौनों से खेले ज़माना हुआ

निकल आओ ख़्वाबों की दुनिया से अब
'अनु' तुम भी जागो सवेरा हुआ