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हटाइए दिल को ! / सुरेश स्वप्निल
Kavita Kosh से
ख़ुदी को याद रख के भूल जाइए दिल को
तलाशे-हुस्न में क्यूँ कर गँवाइए दिल को
रखा है बाँध के यूँ ज़ुल्फ़े-ख़मीदा में उसे
सिला-ए-इश्क़ यही है सताइए दिल को
कोई कमी है इस शहर में हुस्न वालों की
यहाँ-वहाँ जहाँ चाहे गिराइए दिल को
मेरे मज़ार पे फिर आज रौशनी-सी है
तुलू हुई हैं उम्मीदें बुझाइए दिल को
ज़मीं-ए-मीर-ओ-ग़ालिब पे जो हुए पैदा
सुख़नवरों से कहाँ तक बचाइए दिल को
ज़रा बताए क्या बुराई है मयनोशी में
उसी से पूछ लें ज़ाहिद बुलाइए दिल को
बुला रहा है ख़ुदा अर्श पे ज़माने से
ख़याले-यार से अब तो हटाइए दिल को !