भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हठ की दीवार / राजकुमारी रश्मि

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रोक रही पहिये विकास के
हठ की यह दीवार I
इसके पीछे छिपकर बैठे
कुछ हिंसक किरदार I

चाल चल रहे हैं अब अपनी
होकर सारे एक I
आग लगाकर आज देश में
रहे रोटियाँ सेंक I
हम इनको सुविधाएँ देकर
बाँट रहे उपहार I

रचा जा रहा है विदेश से
मिलकर पूरा खेल I
इसीलिए ये सभी अखाड़े
दण्ड रहे हैं पेल I
सारे चेहरे हुए उजागर,
जो भी थे गद्दार I

देश तोड़ने पर उतरी है
इनकी ओछी सोच I
उसने आज बकासुर जैसी
फैलाई है चोंच I
अति आवश्यक है अब इनका
समुचित हो उपचार I