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हड़ताल / ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'
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आज शहर में है हड़ताल
सब चीजों का पड़ा अकाल
रिक्शा, आटो, बसें खड़ी
सभी दुकाने बंद पड़ीं
मंडी में सब्जियाँ सडीं
बिकता कहीं न कोई माल
आया नहीं दूधवाला
मिलती नहीं फूलमाला
सूनी पड़ी पाठशाला
हुआ सिनेमा पर न बवाल।
मिलता है अखबार नहीं
चाय कहीं तैयार नहीं
खुला दवा-भंडार नहीं
हैं सारे मरीज बेहाल
घूम रहे लेकर पैसे
एक भिखारी हो जैसे
कहो जलाएँ शव कैसे
खुला नहीं लकड़ी का टाल।
क्या होगा हड़तालों से
राजनीति की चालों से
जूझे इन जंजालों से
है कोई माई का लाल।