भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हड्डियों का पुल है / देवेन्द्र कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हडि्डयों का पुल है
शिराओं की नदी है
इस सदी से भी अलग
कोई सदी है

आज की कविता
अंधेरे की व्यथा है
फूली है मटर लाल-लाल
पियराई सरसों के बीच से
उठे कुछ नए सवाल