Last modified on 2 जुलाई 2016, at 02:52

हथिया के झांटोॅ आरु बाढ़ / पतझड़ / श्रीउमेश

अबकी भादो के महिना में गंगा जी उमतैली छै।
पाँच कोस तक लहरोॅ के घोड़ा पर चढ़ली ऐली छै॥
बच्चा-बुतरु घोर नींद में सुतोॅ छेलै अनजानी।
देखै छियै राते-रात उमड़लोॅ आबै छै पानी॥
हेलेॅ लागलै चौंकी-खटिया, टटिया बहलै धारोॅ में
कत्तेॅ माल-मवेशी भाँसलै, के गीनेॅ अँधारोॅ में?
ठाठ, बड़ेरी, छप्पर पर छै लोग, करै छै हाहाकार।
दौड़ोॅ-दौड़ोॅ कोय करोॅ हमरोॅ जल्दी यै सें उद्धार॥“
बोलै छै ‘हब्बांयें’, गिरै छै मट्टी के कत्तेॅ दीवार।
दीवारोॅ सें लोग दबै छै, हाय करै छै रे चिक्कार॥
हमरा गाछी पर कत्ते चढ़लोॅ छै जान बचावै लै।
हेली केॅ कत्तेॅ ऐलोॅ, कत्तेॅ छेॅ आरु आबैलेॅ॥
कत्तेॅ भूखोॅ सें मरलोॅ कतेॅ के होलै मटियामेट।
कत्तेॅ हमरोॅ पत्ता खैलकोॅ भरलक आपनोॅ-आपनोॅ पेट॥