हम / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
भारत माँ की शान-आन पर, मरने वाले हम हिन्दू हैं।
धर्म हेतु निज प्राण विजर्सन, करने वाले हम हिन्दू हैं॥
हँस-हँस कर अंगारो पर पग, धरने वाले हम हिन्दू हैं।
रण में रणचण्डी का खप्पर-भरने वाले हम हिन्दू हैं॥
हमने रवि से तेज प्राप्त कर, निज पथ पर बढ़ना सीखा है।
हमने हिमगिरि से उन्नत हो, ऊँचे ही चढ़ना सीखा है॥
घोर निराशा में आशा का, पाठ सदा पढ़ना सीखा है।
हमने पुरुषारथ से अपना, भाग्य स्वयं गढ़ना सीखा है॥
जग साक्षी है, सच्चे हिन्दू, भला मौत से कब डरते हैं।
देश, जाति पर जब संकट हों, त्वरित प्राण अर्पण करते हैं॥
मौत सियारों की न, समर के, प्रांगण में लड़ कर मरते हैं।
वीरों की गति पाते या बस, विजय-वधू को ही वरते हैं॥
वीर पूर्वजों के गौरव का, ध्यान अभी उर में बाकी है।
दया धर्म का संस्कृति का, अभिमान अभी उर में बाकी है॥
विश्व-पूज्य भारत माता की, आन अभी उर में बाकी है।
जन्मभूमि की सेवा का अरमान अभी उर में बाकी है॥
खण्ड-खण्ड हो गया देश-दुर्भाग्य हमारे अपने छूटे।
सोचा करते निशिदिन जो, वह रामराज्य के सपने टूटे॥
अपने ही हाथों से अपने, सौख्य-सुधा के घट हैं फूटे।
क्रूर नियति ने आकर सहसा, वैभव के सब साधन लूटे॥
किन्तु नहीं है दुख इसका कुछ, सुख देकर निज धर्म बचाया।
रहा अरे हिन्दुत्व शेष जब, फिर क्या बोलो भला गँवाया?
लाखों करोड़ों खोकर-जगती में यह यश तो पाया।
वीर हिन्दुओं ने अपना-सर्वस्व गँवा कर ध्येय निभाया॥
आज हमें कुछ और नहीं बस, केवल निज अधिकार चाहिये।
भारत के शासक लोगों से, न्यायपूर्ण व्यवहार चाहिये॥
हिन्दू के दिल में हर हिन्दू से बस सच्चा प्यार चाहिये।
अंग-भंग भारत माता के, ऋण से भी उद्धार चाहिये॥
आओ हम सब मिल कर अपने, हृदय आज सद्भाव भरेंगे।
पावन प्रेम ज्योति प्रगटा कर, मानस के कुविचार हरेंगे॥
वचनबद्ध हो ‘मधुप’ कभी, अपने निश्चित पथ से न टरेंगे।
खण्ड-खण्ड भारत को फिर से, वीरो! कहो अखण्ड करेंगे॥