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हम / रजनी अनुरागी
Kavita Kosh से
रोज़ सुबह से रात तलक
टूटते हैं सपने
टूटती हैं उम्मीदें
टूटता है विश्वास
मगर हम
फिर भी नहीं होतीं निराश
नए सपनों,
नई उम्मीदों,
नई आशाओं के साथ
होती है फिर सुबह
और हर नई सुबह के साथ
हम औरतें फिर से जी उठती हैं