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हम / राकेश रंजन
Kavita Kosh से
अगर आपने
उन्नति के पाँव
उलटी तरफ़
मोड़े हैं
मानवी बुनावट के ताने-बाने
तोड़े हैं
अगर आपकी नीतियाँ
जनता के भाग्य पर
बजर रहे
कोड़े हैं
अगर लकड़बग्घे
और गधे
आपके रथ के
घोड़े हैं
तो भले हम टूटे हैं
बिखरे हैं
थोड़े हैं
आपकी राह में
सबसे बड़े
रोड़े हैं
आपके निज़ाम में
जिन नामुरादों को
नहीं होना था
हम वही हैं
हमारी ग़लती है
कि सही हैं
अगर आप सरकार हैं
तो, हाँ,
हम गद्दार हैं !