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हम कला के पारखी / मोहन आलोक

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शिल्प पूजते हैं
शिल्प में ढली
सर्जना पूजते हैं,
हम कला के पारखी
पत्थर कब पूजते हैं ?

सत्य पूजते हैं
हम मनुष्य की साधना पूजते हैं
सत्य को साकार करती हुई
उसकी कल्पना पूजते हैं ।

हम कला के पारखी
पत्थर कब पूजते हैं ?


अनुवाद : नीरज दइया