भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम कवि / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर
Kavita Kosh से
हम बार-बार जीवन की,
मृत्यु और प्रेम की व्याख्या करेंगे
हम लिखेंगे और
अपनी ही स्थापनाओं को उलटेंगे
हम फिर कुछ नया
मगर अविश्वसनीय कहेंगे
हम बार-बार बदलने वाला सच लिखेंगे
हम लिखेंगे और
लिख चुकने के बाद
रह जाएगा हमेशा ये मलाल
कि यह वैसी नहीं
जैसी चल रही थी मन में
हम थोड़ी अनिच्छा और
थोड़ी नाक़ाबिलियत के बावजूद
लिखना चाहेंगे कुछ ऐसा
जिसे संगीत में ढाला जा सके
नए बिंबों की उधेड़बुन
फिर हमें घरों से विरक्त करेगी
हमारी स्याही में करुणा का द्रव होगा
भले ही हम द्रवित न होंगे
पर हम लिखेंगे -
सम्वेदना।