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हम काले हैं / खगेंद्र ठाकुर
Kavita Kosh से
हाँ, हम काले हैं
काला होता है जैसे कोयला
जब जलता है तो
हो जाता है बिलकुल लाल
आग की तरह
गल जाता है लोहा भी
जब उसमें पड़ जाता है।
हाँ, हम काले हैं
काला होता है जैसे कोयला
जब जलता है तो
हो जाता है बिलकुल लाल
आग की तरह
चमड़ी खींच लेता है
जब कहीं कोई भिड़ता है।
हाँ, हम काले हैं
काला होता है जैसे बादल
जब गरजता है तो
बिजली चमक उठती है
कौंध जाती है
जिससे दुनिया की नजर।
हाँ, हम काले हैं
काली होती है जैसे चट्टान
फूटती है जिसके भीतर से
निर्झर की बेचैन धारा
जिससे दुनिया की प्यास बुझती है।
हाँ, हम काले हैं
काली होती है जैसे मिट्टी
जब खुलता है उसका दिल
तो दुनिया हरी-भरी हो उठती है।
जब जलता है तो
हो जाता है बिलकुल लाल