हम तुम / यतीश कुमार
एक स्थिति हैं
हम तुम
वो जो डाल पर बैठे
तोता मैना हैं न
वो हम तुम हैं
पेड़ की जो दो फुनगियाँ
आपस में बिन बात बतियाती रहती हैं
वो हम तुम हैं
कुमुदिनी के फूल
जो जोड़ो में ही खिलतें है
बस दो दिन के लिए
कल ही तो खिले थे
तुम्हारे गमले में हम
हम हैं स्टेशन की पटरियाँ
जो शुरुआत में समानांतर
और आगे जब चाहे
क्रॉसिंग पर
गले मिलती रहती हैं
या फिर नाव के वो दोनो चप्पू
साथ चलने से जिसके गति रहती है
गंतव्य पर रोज़ रख दिए जाते है
एक साथ रात काटने के लिए
वो हम तुम हैं
शायद हम तुम हैं
घर के एक़्वेरियम में तैरती
नीली और काली मछलियाँ
मौन को समझ,इशारे में बात करते हैं
या वो गिनिपिग हैं दोनो
जो पिंजड़े में अपने शब्द चुगते,पचाते
और कुछ नहीं कह पाते हैं
हम दोनो हैं कभी
दो ,असंख्य
कभी एक या सिर्फ़ शून्य