भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम दोनों / नज़ीर बनारसी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुहब्बत को बरूए कार <ref>पथ प्रदर्शक</ref> ला सकते हैं हम दोनों
ज़माने भर को सीने से लगा सकते हैं हम दोनों
दिलों की बाहमी तल्ख़ी <ref>आपसी कटुता</ref> मिटा सकते है हम दोनों
हिजाबे-दरमियाँ <ref>बीच का परदा</ref> अब भी उठा सकते हैं हम दोनों
बदल सकते हैं शोले आज भी मौजे बहाराँ <ref>बासन्ती पवन के झोंके</ref> में
हर अंगारा गुले खन्दाँ <ref>हँसता हुआ फूल</ref> बना सकते है। हम दोनों
जिसे सुनते ही शिकवे <ref>निन्दा</ref> शुक्र <ref>धन्यवाद</ref> में तब्दील हो जाएँ
दिलों के साज़ पर वह गीत गा सकते हैं हम दोनों
 न पड़ने दें अगर गर्दे कुदूरत <ref>शत्रुता की धूल</ref> शीशा ऐ दिल पर
मुहब्बत को भी आईना दिखा सकते हैं हम दोनों
अगर तख़रीब <ref>तोड़-फ़ोड़</ref> का रूख जानिए तामीर <ref>निमाण की और</ref> हो जाए
वतन को जन्नते अर्जी <ref>संसार का स्वर्ग</ref> बना सकते है हम दोनों
फ़क़त <ref>केवल</ref> बारे मुहब्बत <ref>मुहब्बत का बोझ</ref> ही इक ऐसा बार है जिससे
हर इक उठता हुआ फ़िरना <ref>शरारत</ref> दबा सकते हैं हम दोनों
रहे अमनो अमाँ <ref>शान्ति</ref> वह राह है जिस राह पर चल कर
ख़ुदा शाहिद <ref>ईश्वर गवाह</ref> ज़माने भर पे छा सकते हैं हम दोनों
कहाँ जाएगी हम दोनों से मंजिल सरकशी <ref>कतरा कर निकल जाना</ref> करके
नया जादह <ref>रास्ता</ref> नई मंजिल बना सकते हैं हम दोनों
’नजीर’ अल्लाह रक्खे इत्तिहादे बाहमी <ref>आपसी मेल-जोल</ref> कायम
हर इक मुश्किल को अब आसाँ बना सकते हैं हम दोनों

शब्दार्थ
<references/>