हम नहीं, हमारे वस्त्र चमकदार थे / नीलोत्पल
हम नहीं, हमारे वस्त्र चमकदार थे
हमें अपनी सच्चाई चुनने नहीं दी गई
यह एक भ्रम साबित हुआ कि
हम आज़ाद थे, अलग तरह से
हमारे पास फ़ैसले थे
जो हर मौकों पर छीन लिए जाते
या दबाए जाते
हम नहीं, हमारे वस्त्र चमकदार थे
जब देखना होता आईना
हर जगह से झांकता
इस स्याहदार चमड़ी के भीतर
अपना ही नंगापन
कहने को हम घरों में थे
जबकि हमारी ही नस्ल के लोगों ने
हर ऊँची और आलीशान इमारतों की तहों में
बिताए थे दिन
जो आज भी फ़ैसले के इंतजार में हैं
वे मान्यताएं
जो हमनें नहीं बनाईं
उन्हें ढोते हैं
ख़िलाफ़ नहीं जाते
हम आदर्शों की वकालत नहीं करते
जब वे निकलते हैं सुराहीदार गर्दनों से
जो कि इतने बड़े या छोटे हो जाते हैं
कि धंसने लगते है हमारे सिर उनमें
मौसम आते हैं, बीतते हैं
केलेंडर बदलते चले जाते हैं
हम पूरी तरह सोच नहीं पाते
हमने पाया और किया
उसमें कितनी जगह हमारी थी
कितना योग
मैं जब लिखता हूं तो,
नहीं लिखने के बारे में सोचता हूं
मुझे नहीं मालूम उन अधिकारों के बारे में
जो दर्ज नहीं थे संविधान की किताब में
या कहीं और
मैं लिखता हूं
समय, नियम, संविधान के बाहर
यह मेरी आज़ादी नहीं, मर्यादा भी
मैं बाहर आना चाहता हूं
मैं बस इसी वक़्त उड़ जाना चाहता हूं
कोई प्रस्ताव नहीं, सवाल नहीं
आख़िरकार
हमारी आज़ादी, दी गई शर्तें नहीं हो सकती
हम सब मानवेतर हैं ।