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हम नहीं चाहतीं / मनीषा जैन

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इस दुनिया में
क्या हम सब
डर-डर कर
कर पायेंगे प्यार
क्या हम सब
खुल कर हंस पायेंगी
बच्चों जैसी निश्चल हंसी
हंसी क्यों छिन जाती है हमसे
ऐसी दुनिया
हम नही चाहतीं।