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हम मनुष्य हैं; और रहेंगे / विजय सिंह नाहटा

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हम मनुष्य हैं; और रहेंगे
और; जियेंगे मनुष्य की तरह
एक दूजे के बीच जगह को
मनुष्य-बोध से भरते हुए।
रहेंगे पेट औ' भूख के दरमियाँ
अन्न के दानों की तरह
हलक औ' प्यास के बीच
शीतल जल की तरह
सारे वैषम्य धो दिये जायेंगे एक दिन
अंततः किसी समानधर्मा रक्त की धार से।
बच्चों की किताब के पवित्र कोने में लिखे
नीति वाक्य की तरह जियेंगे
जियेंगे मुहावरों किंवदंतियों में छुपे मर्म की तरह
मुश्किल हालात से गुजर रही दुनिया के लिए
उम्मीद के पुल की तरह जियेंगे
दुखों के पहाड़ से टूट गया एक आदमी
किसी भंगुर मन में क्षीण सा सहारा या कि
जीने लायक बहाने की तरह जियेंगे
अनाम जियेंगे नींव में चुपचाप रखी सुर्ख ईटों की तरह
धरती में एक बीज की तरह अदृश्य जियेंगे
हम जियेंगे मनुष्य की तरह
मनुष्य की भाषा में
लिपि में मनुष्य की पढे-लिखे जायेगे
सारी जटिलताओं सारी कुटिलताओं से सुदूर
एक ऐसे जनपद में
जहाँ सबसे सरल-सुबोध से सौन्दर्य बोध की छाँव तले
जीवन भर आकंठ जियेंगे
 कि, पियेंगे जीवन सत्व रूपी सोमरस
गर, बचाया जा सके इस झंझावात में
तो बचाऊंगा मनुष्य के महज़ मनुष्य होने का गर्व
जबकि; मृत्यु जो जन्म से ही एक संभावना है
आ ही जाएगी द्वार पर दस्तक देने
 उस पल निर्मोही-सा दे दिया जाउंगा
जब तलक जियेंगे मनुष्य की तरह
मनुष्य की भाषा मेंl