भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम मिलते हैं / कमलेश द्विवेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खुशियाँ मिलतीं ग़म मिलते हैं.
सबसे हँसकर हम मिलते हैं.

अच्छे तो हैं इस दुनिया में,
पर ढूँढो तो कम मिलते हैं.

बीते दिन की अलमारी में,
यादों के अलबम मिलते हैं.

हमराही मिलते हैं कितने,
पर कितने हमदम मिलते हैं.

उससे मिलकर लगता ऐसा,
जैसे ख़ुद से हम मिलते हैं.