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हम में से कुछ / शहनाज़ इमरानी
Kavita Kosh से
कई बार होती है मौत हमारी
थोड़ा-थोड़ा मर कर
ज़िन्दा हो जाते हैं
जागते हुए सोना और
और सोते हुए जागना
हम हारते हुए भी बचे रहते है
और जीत को गले नहीं लगाते
बहुत सारी चीज़ों को दुरुस्त करना
और बहुत कुछ से निजात पाना
पेट से बंधी रहती है रोटी
आँसुओं से जलती दुःखों की मशाल
गर्दन पर गिरती हुई वक़्त की कुल्हाड़ी
अपनी अन्तिम निराशा खोजते हुए
हमारे नाम बन्द रहेंगे किताबों में
पर हर बार हमारे ख़िलाफ़
हम में से ही करता है
कोई शुरूआत।