भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हमने तो रगड़ा है / नागार्जुन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुमसे क्या झगड़ा है
हमने तो रगड़ा है--
इनको भी, उनको भी, उनको भी !

दोस्त है, दुश्मन है
ख़ास है, कामन है
छाँटो भी, मीजो भी, धुनको भी

लँगड़ा सवार क्या
बनना अचार क्या
सनको भी, अकड़ो भी, तुनको भी

चुप-चुप तो मौत है
पीप है, कठौत है
बमको भी, खाँसो भी, खुनको भी

तुमसे क्या झगड़ा है
हमने तो रगड़ा है
इनको भी, उनको भी, उनको भी !

(1978 में रचित)