हमारि भाशा / नरेन्द्र कठैत
आखर ब्रह्म च
अर परमेसुर बि
पर बिगर
मनख्यूं का त
य भाशा
बणि नि ह्वलि
सबसि पैली
य द्वी मनख्यूं का
सुर मा ढळी ह्वलि
तब तौं दुंयू का
सुर बिटि
य हौरि लोग्वा बीच
हिली- मिली ह्वलि
पर यू बि
सोची कैन कबि
कि वे मनखी
जिकुड़ी मा
अपड़ि भाशौ तैं
वा
कन्नि ललक रै ह्वलि
जैन
भाशा बचैणू तैं
सबसि पैली
अपड़ि अंगुली
कोरा - दरदरा
माटा मा रगड़ि ह्वलि
आखर- आखर
घिसि-पिटी तैं य भाशा
एक ही दिन मा
माटा बिटि
पाटी मा त
चढ़ी नि ह्वलि
ऐसास करा दि
वीं पिडौ
ज्वा ताम्र पत्र
सीला लेखू पर
आखर - आखर चढ़ौंदि दौं
यिं भाशन सै ह्वलि
याद करा दि
वूं पुरखौं कि खौरि
ज्याँ कि स्यवा मा
वूंन रोज सुब्येर
अपड़ि पाटी घोटि ह्वलि
कन क्वे बिस्र जौला हम
वूं ब्वळख्यों कु योगदान
जौंन भाशा बणौणू
कमेड़ा दगड़ा
अपड़ि सर्रा जिंदगी
छोळी ह्वलि
क्य भूल ग्या
हमारि य भयात
वूं स्ये कि टिकड़्यूं कु त्याग
जु यिं भाशा तैं
ठड्योणू वूंन
दवात्यूं उंद
घोळी ह्वलि
याद करा दि
वु पंख
वु बाँसै कलम
वु प्यन-पैंसिल अर वू रबड़
जौंन भोज पत्र
अर कागज पर
यिं भाशौ तैं
अपड़ि सर्रा जिंदगी
रगड़ि ह्वलि
इथगा जण्न-समझण पर्बि
ब्वना छयां
क्या रख्यूं
यिं भाशा मा
क्वी रुजगार त
य देणी छ नी
अरे !
य भाशै त छै
जैं कु हथ पकड़ी
तुमुन य दुन्या
देखी-पर्खी ह्वलि
फिर्बि!
छोड़ द्या
क्वी बंधन नी
अगर यिं
भाशा ब्वन मा
तुम तैं
भरि सरम औंणि
पर एक बात
बता भयूं!
क्य तुमुन यीं कुु
दूधौ कर्ज चुक्ये यलि
अरे ! दुख - दर्द
बिप्दा मा
जथगा दौं तुमुन
अपड़ि ब्वे पुकारि ह्वलि
उथगी दौं
वे एक ही
ब्वेे सब्द बोली
तुमारि जिकुड़ि मा
सेळी प्वड़ि ह्वलि
आखर ब्रह्म च
अर परमेसुर बि
य बात त हमुन
साख्यूं बिटि
घोटि-घोटी तैं रट यलि
पर न तुम ब्वल ल्या
अर न अगनै कि पीढ़ी ही
यिं भाशा ब्वनो तयार ह्वलि
त सोचा धौं
य भाशा अगनै
कैं उम्मीद पर खड़ि ह्वलि ।