भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमारी घाटी / विश्वनाथप्रसाद तिवारी
Kavita Kosh से
हमारी घाटी हमें वापिस कर दो
वापस कर दो हमारी घाटी
तुम नहीं समझ सकते
ओस में भीगी चट्टानों का दर्द
न उस संगीत को
जब दूधिया चांदनी में धुल जाता है जंगल
तारों भरी रात में फूल झरते हैं
और काँपती हवाओं
हिलती वनस्पतियों के बीच
हम एक-दूसरे के लिए
भोर तक प्रतीक्षा करते हैं।