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हमारी जिंदगी बर्बाद कर के / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
हमारी जिंदगी बरबाद कर के
वो क्यों रोया हमें यूँ याद कर के
कहाँ तक बेरुखी उस की बतायें
थके हम तो बहुत फ़रियाद कर के
नहीं जाती भुलायी याद उस की
गया जो इस तरह नाशाद कर के
अजब थीं यार की हमदर्दियाँ भी
हमें खुद से गया आजाद कर के
हमेशा लूट कर खाया जिन्हों ने
बने अब पाक कुछ इमदाद कर के
गुलों की ख्वाहिशों को यूँ न मसलो
चले जाना इन्हें आबाद कर के
कबूतर देख कर नीचे उतरना
छिपा बैठा कोई सैयाद कर के
तुम्हें पहुँचा गया जो आसमाँ तक
मिटा खुद को गया बुनियाद कर के
भरे दामन में अश्कों का खजाना
गया जो हर किसी को शाद कर के