भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमारी पहचान / सुरजन परोही
Kavita Kosh से
भाषा, भेष-भूषा हमारी पहचान है।
जैसे सब देश में अलग-अलग
वैसे हमारी भाषा के साथ
और उससे सम्बन्धित
बहुत कुछ अलग है।
हम सबका सब कुछ बदल दें
लेकिन रंग रूप बदलेगा नहीं
भारतवंशी का खून बदलेगा नहीं।
कुली तो हमारे संस्कारों से जुड़ा है
फिर क्यों इससे नफरत पड़ा है
एक ओर भारत से इतना लाभ उठा रहे हैं
दूसरी ओर हिन्दुस्तानीपन से इतना नफरत
जवाब खुद आपके पास है
खुद ही चेता
पहचानो तुम कौन हो।
मंजिल पहुँचने के लिए चलना जरूरी है
वह चाल जो मिसाल है
वह चाल जो बिना पैर उठे धरती पर चला सके
जिस पथ पर चलने की इच्छा हो जिज्ञासा रूप में
वह बीज जब अंकुरित हो समझो मंजिल सामने है।