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हमारी रात / पंछी जालौनवी
Kavita Kosh से
हमारी रात चोरी हो गई है
हमारे ख़्वाब हमसे कहते हैं
ऐतेबार की खिड़की खोलो
तुम्हारी रात वहीँ कहीं
अपने क़दमों के निशां
छोड़ कर गई होगी
हमारे ख़्वाब हमसे कहते हैं
तुम चाँद की पुश्त पर
अपनी आँखें रख आओ
कि मिले शायद
तुम्हारी रात का कोई सुराग़
हमारी रात चोरी हो गई है
सय्यारों के किसी और निज़ाम के लिये
हम अपने ख़्वाब में देखते हैं
हमारे हाथ पीठ की तरफ़
किसी नामालूम रिश्ते से बंधे हैं
हमारी आँखें
आसमान को घूर रही हैं
और दो अजनबी-सी हथेलियाँ
हमारी रात मिल जाने की
अपने रब से दुआएँ कर रही हैं
और बारिश होने लगती है
हम भीग जाते हैं
हमारी आँख खुल जाती है
फिर एक नए ख़्वाब
एक नई रात की तलाश में॥