Last modified on 23 अप्रैल 2019, at 15:26

हमारे अतीत का स्वरूप / बाल गंगाधर 'बागी'

भावनाओं का बादल, मेरा इतिहास नहीं है
सदी से रेत पर खड़ी, कोई चट्टान नहीं है
समता अहिंसा की, ज्योति की ज्वालायें
दुनिया में हैं जहाँ पर, अंधियार नहीं है

हमारे विचारों में पंख, अगर नहीं होते
हम इतिहास के पन्नों से, मिट गये होते
न कोई नाम व पहचान, मेरी हो पाती
वर्ण व्यवस्था में हम, दफन हो गये होते

कहते हो तुम कि, मैं शासक ही नहीं था
आज मेरे सल्तनत का निशान है कहाँ?
जा के हड़प्पा मगध की, बुनियाद को देखो
इतिहास में दुनिया के, ऐसा नाम है कहाँ?
तुम आस्था के पाखण्ड को, अध्यात्म कहते हो
दर्शन में किसी आस्था का, नाम नहीं होता
जो तत्व ज्ञान है, उसकी पहचान यही है
कि हवा के धरातल पे, मकान नहीं होता

यथार्थ से अलग है, दुनिया किसी ने देखी
साया किसी व्यक्ति की, काया है बता देता
इतिहास की पहचान तो, भूगोल से होती है
जहाँ संस्कृति सभ्यता का, है निर्माण होता

गर्मी हो धूप में कितनी, जलना उनको पड़ता है
सर्द हो आह में कितनी, उबलना उनको पड़ता है
बग़ावत की आंधी में, क्या ब्राह्मणवाद ठहरेगा
व्यवस्था क्रूर हो कितनी, बदलना उसको पड़ता है