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हमारे पीछे-पीछे / नरेश अग्रवाल

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यह एक खूबसूरत जगह है
खुशियों का एक-एक क्षण हमारे पास आ रहा है
जैसे हमें तृप्त करने
नाव पर सवार हुए तो
यह इतनी आरामदेह लगी
जैसे पानी को बिना छुए
पानी पर ही विश्राम कर रहे हों।
एक चिरस्मरणीय मुद्रा में
बहता है यहाँ पानी धीरे-धीरे
हम भी साथ-साथ
और दूर से सुन्दर दिखने वाली हर चीज के पास
पहुँचते जा रहें हैं हम धीरे-धीरे
कभी किसी को छुआ तो कभी किसी को
इस तरह से सारी दिशाओं को
और जब वापस लौटने लगे
लगा सब कुछ आ रहा है हमारे पीछे-पीछे।