हमारे माँ-बाप / समझदार किसिम के लोग / लालित्य ललित
चाहते हो
मायूस होना ?
क्यों चाहते हो ?
किसलिए चाहते हो ?
किसके लिए चाहते हो !!
कितने आज मायूस हैं
कभी जानने की इच्छा
जाहिर की है !
नहीं की न !
करोगे भी नहीं।
क्योंकि रौंदकर चलना
तुम्हें पसंद हैं
जैसे माँ सारा दिन
सारी रात खटती है
अपने में जीती है
और
परिवार की
महत्वाकांक्षाएं
माँ के सपने को
रौंदकर आगे
बढ़ती है
और माँ
उफ़ भी नहीं करती
हकीकत है यही
सड़क पर चलती गाड़ियां
सड़क वही है
माँ-बापू देश में
पेंशन और टेंशन में
काट रहे है जीवन के
शेष दो-चार दिन
और
बहू-बेटा
पेरिस में मना रहे
छुट्टियां!!
वाह रे मेरे बच्चो
काश
जान जाते
कि बूढ़े माँ-बाप के
किसी कोने में
एक दिल है
और उस दिन दिल की एक
किताब है
जिस पर लिखा है
मेरे बच्चो
तुम्हें तकलीफ ना हो
और उसके लिए
मैं हूँ ना!
बच्चों की नजर में
बूढ़े माँ-बाप का-
कोई मोल नहीं
वाकई में सच है
आज का सच
जिसे नकारा नहीं जा सकता
मानो या ना मानो