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हमें गढ़ते हैं वो / रश्मि भारद्वाज

वे कहते हैं कि नाक की सीध में चलते रहो
यही है रास्ता
दाएँ-बाएँ देखना गुस्ताख़ी है
और रुकना समय की बरबादी
बस चलते रहो
और हो सके तो मूँद लो अपनी आँखें,
बन्द कर लो अपने कान
मत करो प्रश्न
कि हम चल चुके हैं, बस यही है रास्ता

इस रास्ते पर बिना थके, अनवरत चलते जाने के लिए
उन्होने गढ़े हैं कई सूत्र वाक्य
जो हमारी डूबती आँखों की चमक और
भटकते क़दमों की थकान को थाम सके

इस रास्ते पर ठीक-ठीक चलते जाने के लिए
उन्होने उधार दी हैं हमें अपनी जुबान, अपनी आँखें
अपने कान, पैर और बाक़ी सभी आवश्यक अंग
ताकि हम बोले तो उनकी बोली
देखे बस उतना जितना उन्हें ज़रूरी लगे
और सुने वही जितना सुनना हमें रास्ते पर बनाए रखे

यह बात दीगर है कि
उधार की जुबान से बोला नहीं जाता
सिर्फ हकलाया जाता है
ठीक वैसे ही जैसे किसी और के बताए रास्ते पर
चला या दौड़ा नहीं, सिर्फ रेंगा जाता है
और अपनी आँखें बन्द कर लेने का सीधा अर्थ होता है
बन्द कर देना अपनी आत्मा के कपाट

और यह सब करके हम पहुँच पाएँ वहाँ
कि जहाँ तक पहुँच पाएँ हैं वो
अब यह कौन पूछे कि
कहीं पहुँचने का अर्थ क्या वहीं होता है
जो तय किया है उन्होने