भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हमें तो हुक्म हुआ सर झुका के आने का / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


हमें तो हुक्म हुआ सर झुकाके आने का
नहीं ख़याल भी उनको नज़र उठाने का

ये किस बहार की मंज़िल पे रुक गए हैं क़दम
नज़र को आगे इशारा नहीं है आने का

निगाहें बढ़के लिपटती रहीं निगाहों से
चले तो वक़्त नहीं था गले लगाने का

नहीं जो प्यार हो हमसे तो दोस्ती ही सही
ग़रज़ कि कुछ तो बहाना हो मुस्कुराने का

गुलाब यों तो हज़ारों ही खिल रहे हैं यहाँ
है रंग और ही लेकिन तेरे दीवाने का