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हम्मर बेटा छै बकलेल / कैलाश झा ‘किंकर’
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हम्मर बेटा छै बकलेल ।
पेट मेॅ खर नै सिंग मेॅ तेल ।।
माय कहलकै हेरे लाल,
आने जल्दी आटा, दाल,
दाल केॅ पैसा ऊ बचाय केॅ
किनने छै गमकौआ तेल ।
दूध उठौना देलक छोड़ाय,
ऊ पैसा धोबी घर जाय,
आयरन करी केॅ पैंट-शर्ट मेॅ
खेलै छै ऊ क्रिकेट खेल ।
कथी ले घर मेॅ सब्जी आनतै,
ऊ पैसा केॅ गुटका फाँकतै,
पान-चिबैने ठोर रँगैने
साथी सब मेॅ करै कुलेल ।
बल्हों हम कनियाँ करी देलियै,
जोड़ते-जोड़ते आबे बुढ़ैलियै,
पत्नी के फरमाइस छोड़ि केॅ
छुच्छे फुटानी सांझ-सबेर ।