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हम्मर लेहू तोहर देह (कविता) / हम्मर लेहू तोहर देह / भावना

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हम्मर लेहू से बनल
तोहर देह
हमरा बिसार के
अप्पन जिनगी में
गेल हए रम
आ हम खुस हती
ई देख-सुन के-
कि हम्मर लेहू
हमरा से दूर-
खूब फुलइत-फलइत हए
माली त खाली बीजे रोपइअऽ
आ देख-भाल करइअऽ
तईयो ऊ फूल
ओकरे कहाइअऽ
लेकिन!
एगो माई
जे अप्पन लेहू से
बनवइअऽ एगो पिंड
अपना कोख में
आ नौ महीना तक सींचइअऽ
अप्पन लेहू से
जनम देइअऽ-
एगो लरिका
जे तोहर देह हए
ई तोहर देह
हम्मर दोसर जनम हए
एगो माई के रूप में
आउर हम खुस हती
तोहर ई देह देख के
जे हमर लेहू से बनल हए।