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हर मुसीबत ऐश का पैग़ाम है / रतन पंडोरवी

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हर मुसीबत ऐश का पैग़ाम है
हर मसर्रत मज़हिरे-आलाम है

देख लेंगे दुश्मनों की दोस्ती
दोस्तों की दुश्मनी तो आम है

आ के दुनिया में मसर्रत की तलाश
हर्फे-बातिल है ख़याले-खाम है

जिस ने राहत की तमन्ना छोड़ दी
बस उसे आराम ही आराम है

ताइरों धोखा न खा जाना कहीं
दाना जिस को कह रहे हो दाम है

हम ने अपना काम पूरा कर लिया
कद्रो-कीमत अब ख़ुदा का काम है

इक सुरुरे-जाविदानी चाहिए
मय से मतलब है न शौके-जाम है।