भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हरदम इसकी नाक चढ़ी है / प्रकाश मनु

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पापा
दीदी बहुत बुरी है!

बिना बात करती है कुट्टी
सीधे मुँह न करती बात,
मैं कहता हूँ-खेलो मिलकर
मगर चला देती यह लात।
हरदम झल्लाया करती है,
हरदम इसकी नाक चढ़ी है!

मेरे सभी खिलौने लेकर
जिस-तिस को दिखलाया करती,
माँगूँ तो कह देती ना-ना,
मुझ पर रोब जताया करती।
सब दिन कहती-पढ़ो-पढ़ो, बस
आफत मेरे गले पड़ी है!

कभी न अपनी चिज्जी देती
उलटे मेरी हँसी उड़ाती,
कह देती है सब सखियों से
बुद्धू कहकर मुझे चिढ़ाती।
बातें करती मीठी-मीठी
पर भीतर से तेज छुरी है!