भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हरित क्रान्ति / धूमिल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इतनी हरियाली के बावजूद
अर्जुन को नहीं मालूम उसके गालों की हड्डी क्यों
उभर आई है । उसके बाल
सफ़ेद क्यों हो गए हैं ।
लोहे की छोटी-सी दुकान में बैठा हुआ आदमी
सोना और इतने बड़े खेत में खड़ा आदमी
मिट्टी क्यों हो गया है ।