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हल / शिरीष कुमार मौर्य

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उसमें बैलों की ताकत है और लोहे का पैनापन


एक जवान पेड की मजबूती


किसी बढ़ई की कलाकार कुशलता

धौंकनी की तेज़ आंच में तपा

लुहार का धीरज



इन सबसे बढ़ कर

धरती को फोड़ कर उर्वर बना देने की

उत्कट मानवीय इच्छा है

उसमें



दिन भर की जोत के बाद पहाड़ में

मेरे घर की दीवार से सट कर खडा वह

मुझे किसी दुबके हुए जानवर की तरह

लगता है



बस एक लंबी छलाँग

और वह गायब हो जाएगा

मेरे अतीत में कहीँ।