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हवा-2 / सुनीता जैन

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पास आकर बोली हवा,
मुट्ठी में लो
साथ चलूँगी
श्वासों में ढल श्वास बनूँगी

तरु सिहरा,
शिराओं में जागा
भ्रम गति का

खोले बाहु, दिया बिसरा
वक्ष पर अम्बर टिका,
शाखा पर तिनकों का ऋण
स्पन्दन कोटर में
गाते खग का

उड़ा तरु जब चली हवा
अभी यहीं थी
यहीं कहीं थी
गई कहाँ वह
किधर,
हवा?