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हवा पर भरोसा रहा / सर्वत एम जमाल
Kavita Kosh से
हवा पर भरोसा रहा
बहुत सख्त धोखा रहा
जो बेपर के थे, बस गए
परिंदा भटकता रहा
कसौटी बदल दी गयी
खरा फिर भी खोटा रहा
कई सच तो सड़ भी गए
मगर झूट बिकता रहा
मिटे सीना ताने हुए
जो घुटनों के बल था, रहा
कदम मैं भी चूमा करूं
ये कोशिश तो की बारहा
चला था मैं ईमान पर
कई रोज़ फाका रहा