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हवा में फिरते हो क्या / ज़फ़र
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हवा में फिरते हो क्या हिर्स और हवा के लिए
ग़ुरूर छोड़ दो ऐ ग़ाफ़िलो ख़ुदा के लिए.
गिरा दिया है हमें किस ने चाह-ए-उल्फ़त में
हम आप डूबे किसी अपने आशना के लिए.
जहाँ में चाहिए ऐवान ओ क़स्र शाहों को
ये एक गुम्बद-ए-गर्दूं है बस गदा के लिए.
वो आईना है के जिस को है हाजत-ए-सीमाब
इक इज़्तिराब है काफ़ी दिल-ए-सफ़ा के लिए.
तपिश से दिल का हो क्या जाने सीने में क्या हाल
जो तेरे तीर का रोज़न न हो हवा के लिए.
तबीब-ए-इश्क़ की दुक्काँ में ढूँढते फिरते
ये दर्द-मंद-ए-मोहब्बत तेरी दवा के लिए.
जो हाथ आए 'ज़फ़र' ख़ाक-पा-ए-फ़ख़रूद्दीन
तो मैं रखूँ उसे आँखों के तूतया के लिए.