भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हवाइ यात्राक बाद-2 / दीप नारायण

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पिताक आँगुर पकड़ि
धन खेतीक मछारि पर चलैत
एकटा बेदरा
अकासक छाती चिरैत
गड़गड़ाइत हवाइ जहाज केँ देख
हाथ उठा-उठा देखबैत आ
खुश होइत खुब-खुब बहुत देर धरि

किन साइत, एहु दुआरे
कि काल्हि
एहि पर चढ़ब
हवाक संग लड़ब
होयत ओकरे संग

पिताक नहि छन्हि फुरसति मुदा,
सोचबाक लेल हवाइ जहाज
ओ खहरि जाइत अछि
देखबाक लेल धानक खाउर
जकरा रोपबाक छैक
एहि कोला सँ उखारि कोनो आन कोला मे

निकलि जाइत अछि हवाइ जहाज
माथक सिमान सँ बहुत दूर
धुर पर चढ़ि
अकास केँ निघारति ओ बेदरा
सोंचैत छैक उड़ान आ
हेरा' जाइत छैक भविष्यक सपना मे।