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हसीन सपने / असंगघोष
Kavita Kosh से
मेरे हसीन सपनों
क्यों आते हो
तुम बार-बार
उन काले-काले
घुमड़ते बादलों की तरह
जो केवल गरजना जानते हैं।
तुम भी तो
निद्रा के साथ-साथ
आ जाते हो, रात भर
मुझे स्वर्गिक वातावरण की
अनुभूति कराने
और
जैसे ही
मैं उस आनन्द को
भोगने की चेष्टा करता हूँ
तुम निद्रा के साथ ही चले जाते हो
उस टूटे हुए तारे की तरह
जो अपना अस्तित्व ही खो देता है
ठीक उन
बरसाती बुलबुलों की तरह
जो एक बूँद के साथ जन्म लेते हैं,
अगली ही बूँद से लुप्त हो जाते हैं
मेरा जीवन भी तो तुम्हारी ही तरह
नश्वर है, सांस रुकने तक
उसके बाद रह जाएगा
मेरे कर्मों का ढेर
अच्छे-बुरे होने का
अहसास कराने के लिए।