भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हस्तिनापुर / माद्री / तेजनारायण कुशवाहा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मद्र के बेटी बाट भरी खूभे कानकै
गंगा पुत्रें डोला काढ़ी कनिया लानकै।

झूमिये उठलै हस्तिनापुर शहर
भीतर-बाहर फैललै खुशी लहर

कुन्ती रानी कनियां उतारकै जैं घ्ज्ञरी
बरसलै तौनी घरी अच्छत के झरी

राजमहल ले गेलै आदर सहित
गूंजलै दुआर-ऐंगन देवी के गीत

ऊंचोॅ मड़वा गड़ैलै खर सें छवैलै
गाय के गोबर सानी मड़वा निपैलै

कुरखेत सें माटी लान कै सवासिनें
ढोल-मानर के संग गारी-गीत गैनें

मुहूर्त में गजमोती सें चौका पुरैलै
मानिक दियरी सोना कलशें धरैलै

नौनिां काटकै नख पैलकी सगुन
पोखरा खनैलै नेग लेलकी धोबिन

लड़का-लड़की दोन्हू बैठलै आसन
जय-जय ध्वनि करकै नौआ-बाभन

तखने की सोहै दुलरैती बेटी वर
माथे मउरिया सम्हारे सुन्नर वर

सेहो सौहै हवा में लरिया लहराय
चादर कान्हें देही जोड़ा जामा सुहाय

सोहै रहै दुल्हा राजा के साज सिंगार
पगिया ऊपर मौर गले कंठहार

पराक्रमी दिव्य रूप वैरी विनाशक
जनता के सेवक सत्य के आराधक

सुन्दर सम सुडोल एक रंग अंग
सुहानोॅ-लुभानोॅ/मात करतें अनंग।

कनियां देह रेशम लहंगा-पटोर
रतन जड़लोॅ चदरीरोॅ टोर-टोर

गोल-गोल मोती के फुदन लहराय
रत्न परिधान सें अंग झलमलाय

द्यृति अंशी माद्री देवी अनिंद्य सुन्दरी
आगू फिक्कोॅ उदासीन लागै अपसरी

गोरोॅ-गोरोॅ अंग से सुगन्ध फैलै रहै
पुरैन-नैन में भूमंडल हेलै रहै

कारोॅ-कारोॅ चिकुर छवि पसारै रहै
श्रोणी-कुच-भारें जवानी निखारै रहै

लहसुनिया मणि के मात करै रहै
जहां रहै तहां रात इंजोर भै रहै

झलकै रहै देहें सभ्भेटा सुलक्षण
सब काहीं बांटै रहै छवि से चन्दन

मिली-जली संगे रहै निवाहेरोॅ वादा
करकै दुल्हा-दुल्हैन राखै ले मर्यादा

फनु पानी-धार सें लावा मेराय होलै
बिहा रोॅ आरोॅ विधि ढोल बजाय भेलै

राजा पांडु ने देलकै मांग में सिन्दूर
मद्र-दुहिता भेली मद्रदेश से दूर

जैजैकार गीत बाजा आ तारी पुंजित
वेद-मंतरोॅ सें भेलै गगन गंुजित

देवें सब आसीसकै फूल बरसाय
द्यावा-भूमि खुश भैकेॅ देलकै बधाय

धृतराष्ट्र भीष्म आ अम्बिका अम्बालिका
दादी सत्यवती आसीसकै दै दै टीका

धरतीएं गन्ध जलें रस तेजें रूप
वायु स्पशर्् के आसमाने शब्द अनूप

गंगा-यमुना आरनी नदियां उमंगि
आर्दता लै आसीसकै प्रेमभाव पगि

समुद्रें विस्तार हिमपर्वतें विश्वास
बनें उपवनें देलकै मधुर वास

विभु विभव सुरुजें तेज आ स्पंदन
चाने ओषधि सौम्यता शीतल चंदन

विधि रचना-भेद शिवें अचल भक्ति
राम मर्यादा दुर्गा मैया अमित शक्ति

सुख-सौख्य लछमी सनेह मेधा वानी
श्रद्धा-श्रद्धा के दैलकै सान्निध्य भवानी

आयुर्विद्या ईश्वरें देॅ सम्पति संतति
फूलै-फरै सुखी रहै सदैव दम्पति!